A Public Book by Dinesh Singh Rawat
मेरे सपनो मे आ कर तूने मुझ पर बड़ा एहसान किया हैं. सूरत तो तूने छिपा ली हिजाब में, पर सिरत दिखा कर लूट ली हैं मेरी जान तूने अक्स अपना आईने में उतार कर,